Thursday 31 March 2016

एक तपस्या

एक दौऱ था सब खूब था क्यों की ज़िंदगी ने किया ही कुछ इस कदर जो शायद कुदरत को मंजूर था,पंहुचा दिया एक चंचल बचपन को कठनाईयों के रेगिस्तान में,जहां चाय थी दीवारों की जो अपने घर की याद दिलाती थी इसीलिए शायद मुँह पे चुपी छायी रहती जाती थी.
दीवारें ही बस एक सच्ची साथी थी,क्यों की इस तपस्या  से ही मिलनी मेरे जीवन को दिशा थी,मैं जवान था जिसको  भेजा  ही  मिशन की  कामयाबी  के  लिए था, वरना  पुणे  में  हमारी  कोनसी  दीवानी थी पर  ज़िंदगी  रगीन  बनानी थी, युतो ज़िंदगी  ने  कआ काइ   से  मूढ़  दिखाए  हर दिन नए चहरे और खूब से  मिज़ाज़ सामने आये ,पढाई तो  बस एक रूप  थी उस  तपस्या  का  पर  असलियत  में  तो  हालात ही  साही  शिक्षां  थे,वक़्त  वक़्त  पे  खुद  को  अग्गह  करते  हुए  समय  निकल  गया ,हरयलई  के  नज़रो  में  दिनों  के  फुवरो  में  और  मौसम  के  नकरिले  मिज़ाज़  ने  हई  समय  को  एक  कढ़ी  की  तरह  कुदरत  से जोड़े  रखा , बचपना  छोड़   खुद  से  रूहबरू  होने  का  वो  समय  मिला  जो   शायद  मेरे  ज़िंदगी   को  एक  नया  मूढ़  ही  दिखा  गया  और  एक  चंचल  बचपन  को   दुनिया  के  रंग  रूप  और कढ  वे  सच  से महरूम  करवा  गया.
 अब  मंज़र  करीब  था  और  ये  ही  मेरा  नसीब  था  खूब   से  अछि  आत्माओं  से  मिलने  के  मौका  मिला    समझ  में  आया  वो  फरक  जिसको  समझने  में  जीवन  लग  जाता     शरीर  और  आत्मा  में  जो  फेर  बदल  हुआ  वो  शायद  मुकम्मल  नज़र  आता  हैखुद को  सभल  ना   था  और  अपनी  कमज़ोरियों  को  अपनी  ताक़त  बन  था ,युही  तो  खुद  का  आत्म  विश्वास  जगना  था . उन  वादियों  में  अलग  ही  एक  भाव  था  कभी  लोनावला  की  सड़कों  को  नापना  तो  कभी  कार  ही  हमारा  बार  था ,
ज़िंदगी  खूब निराली  थी और  पुणे  में  हेर  ओर हरयाली  थीगुमसुम  तो  बस मैं  ही  था  जो  अपने  विचलित  मन  को  सभल  ने  में  लाग  था , देख  रहा  था  टोल  रहा  था  इंसान  को  ओर  उसकी  समझदारी  को ,कई  दुनिया  के  झूट  ओर  सच  से  सामना  हो  गया  इस  दूरं  ,भलीभांति  जान  ने  लगा  जीवन  की  कुछ  परिभशए पर इंसान  का  ज्ञान  कभी  ना  खत्म  होने  वाला  बाण  है  जो  युही  कुछ  नया  लात  और  ज़िंदगी  में  कुछ  अजूबे  दिखता  ही  रहेगा ,ये  ही    कुदरत  का  मेला  इसलिए  कहते    हेर  शाम  के  बाद   सवेरा .
मैं  घर  वालो  का  आभारी  हूँ  जिनने  खरचा  उठालिया  इस  बचपन  को  मुद्राओं  की  मदत  से  मेरे  ऐनी  वाले  कल   को   सुधर  दिया  ज्ञानी  और  मूर्ख  में  एक  फरक  समझा  दिया .

Tuesday 19 November 2013

ये ज़िंदगी है !

जो चाहा कभी पाया नहीं,
जो पाया कभी सोचा नहीं,
जो सोचा कभी मिला नहीं,
जो मिला रास आया नहीं,
जो खोया वो याद आता है
पर
जो पाया संभाला जाता नहीं ,
क्यों  
अजीब सी पहेली है ज़िन्दगी
जिसको कोई सुलझा पाता नहीं.
जीवन में कभी समझौता करना पड़े तो कोई बड़ी बात नहीं है,
क्योंकि,
झुकता वही है जिसमें जान होती है,
अकड़ तो मुरदे की पहचान होती है।
ज़िन्दगी जीने के दो तरीके होते है!
पहला: जो पसंद है उसे हासिल करना सीख लो.!
दूसरा: जो हासिल है उसे पसंद करना सीख लो.!
जिंदगी जीना आसान नहीं होता; बिना संघर्ष कोई महान नहीं होता; जब तक न पड़े हथोड़े की चोट; पत्थर भी भगवान नहीं होता।
जिंदगी बहुत कुछ सिखाती है;
कभी हंसती है तो कभी रुलाती है; पर जो हर हाल में खुश रहते हैं; जिंदगी उनके आगे सर झुकाती है।
चेहरे की हंसी से हर गम चुराओ; बहुत कुछ बोलो पर कुछ ना छुपाओ;
खुद ना रूठो कभी पर सबको मनाओ;
राज़ है ये जिंदगी का बस जीते चले जाओ।
इस कठिन प्रतियोगिता जीते चले जाओ,ये  कि इससे हस्सी ख़ुशी से आराम दिल वो 
और दुःख के काटो को दूर हटाओ और हेर मुश्किल का सामना केरो  कुछ तो काम केरो।
ये ये ज़िंदगी तो मौसम कि तरह है कभी सूरज कि किरणे तो कभी अँधेरे घना है। 
क्या खोया क्या पाया इस्का गम मात मनाओ,
ये ज़िंदगी ह प्यारे बस ख़ुशी का  और मुश्किलो को तोड़े चले जाओ,
ये ही ज़िंदगी बस जीते चले जाओ। 

happy life

जो चाहा कभी पाया नहीं,
जो पाया कभी सोचा नहीं,
जो सोचा कभी मिला नहीं,
जो मिला रास आया नहीं,
जो खोया वो याद आता है
पर
जो पाया संभाला जाता नहीं ,
क्यों  
अजीब सी पहेली है ज़िन्दगी
जिसको कोई सुलझा पाता नहीं.
जीवन में कभी समझौता करना पड़े तो कोई बड़ी बात नहीं है,
क्योंकि,
झुकता वही है जिसमें जान होती है,
अकड़ तो मुरदे की पहचान होती है।
ज़िन्दगी जीने के दो तरीके होते है!
पहला: जो पसंद है उसे हासिल करना सीख लो.!
दूसरा: जो हासिल है उसे पसंद करना सीख लो.!
जिंदगी जीना आसान नहीं होता; बिना संघर्ष कोई महान नहीं होता; जब तक न पड़े हथोड़े की चोट; पत्थर भी भगवान नहीं होता।
जिंदगी बहुत कुछ सिखाती है;
कभी हंसती है तो कभी रुलाती है; पर जो हर हाल में खुश रहते हैं; जिंदगी उनके आगे सर झुकाती है।
चेहरे की हंसी से हर गम चुराओ; बहुत कुछ बोलो पर कुछ ना छुपाओ;
खुद ना रूठो कभी पर सबको मनाओ;
राज़ है ये जिंदगी का बस जीते चले जाओ।
 happy happy life 

Wednesday 24 April 2013

Pain Which Never Drains

Nothing i can do will bring you back...
deep inside my heart is sad...
moments she gave me are priceless...
i swear my love is true not one part less...
still i am left with last hope...
sometimes i feel i should go for the rope...
but the smile on my face is biggest irony.

Father to Son

i don't understand this child
though we haved lived together now in the same house for years.
i know nothing of him,so try to build up a relationship from now.
he was when small,yet have i killed ,the seed i spent or sawn it where.
the land is his and none of mine?
we like sronger,thereb is no sign of understanding in the air.
this child is built to my design.
yet what he loves i cannot share.
silence surrounds us,
iwould have him prodigal returning to his father house the home he know.
rather than see him make and move,hid world i would forgive him to.
shaking from sorrow a new love father and son we both must live on the same globe,
and the same land.
he speaks  i cannot understnad myself,why anger grows from gries,
we each but out an empty hand longing for something to forgive.

Bachpan

ek bachpan zamaana tha,
khushiyo ka khazana tha, chahat chaand ko paane ki thi,
dil titliyo ka deewana tha...
khabar na thi kuch subh ki na shaam ka thikana tha,
thak haar ker aana school se,per khelne bhi jaana tha.
dadi ki khani thi ,pariyo ka fasana tha...
barish me kaguz ki kashti thi,her masaum suhana tha.
her khel me saathi the,her rishta nibhana tha.
rone ki vajha na thi na ,na haasne ka bhana tha,
ab nahi rahi vo zindgi jaisa bachpan ka zamana tha....
 

Friday 31 August 2012

देश प्रेम

देश प्रेम                       
देश को आगे बढ़ाना है ,

एक सुंदर संसार साजना है,
भ्रष्टाचार जैसे दीमक को जढ़ से मिटाना है, 
येही समय है कुछ केर गुज़रने का,
माटी का कार्ज़ चुकाना है,
देश को आगे बढ़ाना है .
बूढ़े बाघ्ड़ बिल्लो को हाटाना है,
और देश के नोजवान को अब ये बेढः उठाना है,
उज्वाल संसार की लोंह को प्रज्वालित कर दिखाना है,
 देश को आगे बढ़ाना है ,
एक सुंदर संसार जो साजना है.
बहुत हुई कुर्बानिय अब कर के कुछ दिखाना है,
जाहे लेना पद्र्हे हर घर में एक भगत सिंह को जन्म ,
या बाना पद्र्हे रानी चासी,
पर अब अपनों से ये देश आज़ाद करना है,
काले धान को वोपिस ला गरीबो का पेट भराना है,
बचों को सिख्षा का महत्त्व बताना है. 
अच्हा बनना है तो कुढा  भी खुद उठाना है,
अन्ना के काधे पे नहीं अब तो खुदही ईट से ईट बजाना है,
आने वाली पीढ़ी का जीवन जो सवर्ग बनाना है,
बाल श्रम  से अब कइयो को बाचना है,
और अपने देश की सब से कमज़ोर कढी गरीबी को हटाना है,
पढाई में हम आगे है पूरे झाहन को ये दिखाना है,
कारोबार की क्या बात केरे सेन्सेक्स हम ही बनाना है.
देशा की फोज को अछा गोला बारूद पहुचेंगे,
हरबार की तरह दुश्मन के चके झुढ़एंगे,
हर मासूम की जान का बदला पूरा कर के दिखाएँगे,
हर  कोशिश को सफल बनना है तो,
एक नई क्रांति को लाना होगा,
हम सब को एक जुट हो जाना होगा,
बाध के कफ़न सर पे,
मौत से टकराना होगा,
नहीं तो बस नोकर बनके जीवन बिताना होगा 
और बढ़ी बढ़ी हांक के झूठे महल गिरना होगा,
पर अब जब जंग चिढ ही गई है तो उलटे पैर नहीं घुमाना होगा,
अब तो बस बुरे का अंत को अच्छाई का डूंका बजाना होगा 
तभी तो ये देश अस्लियात में खुशनसीब से भरा अफसाना होगा.